Panchanga
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Author: regmihari
Bahattar Vakya Shree Ramanujacharya
श्रीमते रामानुजाय नम:। भगवान भाष्यकार श्रीरामानुजाचार्य के अंतिम उपदेश बहत्तर वाक्य दयासागर श्रीभाष्यकार भगवान श्रीरङ्ग मन्दिर में कालक्षेप के समय परमैकान्तिकशिष्यों से बोले, हे श्रीवैष्णवों ! 1) अपने आचार्य एवं अन्य श्रीवैष्णव भागवत दोनो का कैंकर्य समान भाव से करना चाहिए। 2) पूर्वाचार्यों के ग्रन्थों में विश्वास करके ही आचरण करना चाहिए। 3) रातदिन इन्द्रियों …
Vedanta-darshan Free PDF Download
वेदान्त ज्ञानयोग का एक स्रोत है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। इसका मुख्य स्रोत उपनिषद है जो वेद ग्रंथो और वैदिक साहित्य का सार समझे जाते हैं। उपनिषद् वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है, इसीलिए इसको वेदान्त कहते हैं। कर्मकांड और उपासना का मुख्यत: वर्णन मंत्र और ब्राह्मणों में …
आदित्यहृदयस्तोत्रम्
आदित्यहृदयस्तोत्रम्(वाल्मीकिरामायणांतर्गतम्) ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितं । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥ दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणं । उपागम्याब्रवीद्रामं अगस्त्यो भगवान् ऋषिः॥ राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनं । येन सर्वानरीन्वत्स समरे विजयिष्यसि ॥ आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनं । जयावहं जपेन्नित्यं अक्षय्यं परमं शिवम् ॥ सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनं । चिन्ताशोकप्रशमनं आयुर्वर्द्धनमुत्तमम् ॥ रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतं । पूजयस्व …
Hanuman Ji ki Aarati
आरती कीजै हनुमान लला कीदुष्ट दलन रघुनाथ कला की आरती कीजै हनुमान लला कीदुष्ट दलन रघुनाथ कला कीआरती कीजै हनुमान लला की जाके बल से गिरिवर कांपेरोग दोष जाके निकट न झांके अंजनि पुत्र महा बलदाईसन्तन के प्रभु सदा सहाई आरती कीजै हनुमान लला कीदुष्ट दलन रघुनाथ कला कीआरती कीजै हनुमान लला की दे बीरा …
Gita 18th Chapter in Hindi Traslation
उसके उपरान्त अर्जुन बोले, हे महाबाहो ! हे अन्तर्यामिन् ! हे वासुदेव ! मैं संन्यास और त्यागके तत्त्वको पृथक्-पृथक् जानना चाहता हूँ। १। इस प्रकार अर्जुनके पूछनेपर श्रीकृष्णाभगवान् बोले, हे अर्जुन ! कितने ही पण्डितजन तो काम्यकोंके* त्यागको संन्यास जानते हैं और कितने ही विचारकुशल पुरुष सब कर्मोक फलके त्यागको त्याग कहते हैं। २ …
Gita 17th Chapter in Hindi Traslation
इस प्रकार भगवानके वचन सुनकर अर्जुन बोले, हे कृष्ण ! जो मनुष्य शास्त्रविधिको त्यागकर केवल श्रद्धासे युक्त हुए देवादिकोंका पूजन करते हैं उनकी स्थिति फिर कौन-सी है? क्या सात्त्विकी है ? अथवा राजसी क्या तामसी है? । १। इस प्रकार अर्जुनके पूछनेपर श्रीकृष्णभगवान् बोले, हे अर्जुन ! मनुष्योंकी वह बिना शास्त्रीय संस्कारोंके केवल स्वभावसे उत्पन्न …
Gita 16th Chapter in Hindi Traslation
उसके उपरान्त श्रीकृष्ण भगवान् फिर बोले, हे अर्जुन ! दैवी सम्पदा जिन पुरुषोंको प्राप्त है तथा जिनको आसुरी सम्पदा प्राप्त है, उनके लक्षण पृथक्-पृथक् कहता हूँ, उनमें से सर्वथा भयका अभाव, अन्तःकरणकी अच्छी प्रकारसे स्वच्छता, तत्त्वज्ञानके लिये ध्यानयोगमें निरन्तर दृढ़ स्थिति और सात्त्विक दान। तथा इन्द्रियोंका दमन, भगवत्पूजा और अग्निहोत्रादि उत्तम कर्मोका आचरण एवं वेद-शास्त्रोंके …
Gita 15th Chapter in Hindi Traslation
उसके उपरान्त श्रीकृष्णभगवान् फिर बोले कि हे अर्जुन ! आदिपुरुष परमेश्वररूप मूलवाले और ब्रह्मारूप मुख्य शाखावाले। जिस संसाररूप पीपलके वृक्षको अविनाशी: कहते हैं तथा जिसके वेद पत्ते कहे गये हैं; उस संसाररूप वृक्षको जो पुरुष मूलसहित तत्त्वसे जानता है, वह वेदके तात्पर्यको जाननेवाला है । १ । हे अर्जुन ! उस संसार-वृक्षकी तीनों गुणरूप जलके …
Gita 14th Chapter in Hindi Traslation
उसके उपरान्त श्रीकृष्णभगवान् बोले, हे अर्जुन ! ज्ञानोंमें भी अति उत्तम परम ज्ञानको मैं फिर भी तेरे लिये कहूँगा कि जिसको जानकर सब मुनिजन इस संसारसे मुक्त होकर परम सिद्धिको प्राप्त हो गये हैं। १। हे अर्जुन ! इस ज्ञानको आश्रय करके अर्थात् धारण करके मेरे स्वरूपको प्राप्त हुए पुरुष सृष्टिके आदिमें पुनः उत्पन्न नहीं …
Gita 13th Chapter in Hindi Chapter
उसके उपरान्त श्रीकृष्णभगवान् फिर बोले, हे अर्जुन ! यह शरीर क्षेत्र है ऐसे कहा जाता है और इसको जो जानता है, उसको क्षेत्रज्ञ, ऐसा उनके तत्त्वको जाननेवाले ज्ञानीजन कहते हैं। १। और हे अर्जुन ! तू सब क्षेत्रोंमें क्षेत्रज्ञ अर्थात् जीवात्मा भी मेरेको ही जाना और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञका अर्थात् विकारसहित प्रकृतिका और पुरुषका जो तत्त्वसे जानना …